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Monday, Sep 29, 2025
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गरीबों के डॉक्टर के बाद अब बेटा भी चला गया….


मोगा शहर सूद गोत्र और गिल गोत्र के लिए जाना जाता है, क्योंकि ये दोनों गोत्र यहां ज़्यादा संख्या में हैं।
मैं पहले ही गिल परिवार के बारे में लिख चुका हूं, और सूदों के बारे में लिखना था, पर यह नहीं सोचा था कि इस समय लिखना पड़ेगा।
वैद्य सतपाल सूद परिवार, जो कि किसी पहचान का मोहताज नहीं है — वैद्य जी जब घर से निकलते थे, तो लोग उन्हें सलाम करते थे। उनका अस्पताल जाना एक रोज़मर्रा की बात थी।
2017 में वैद्य जी का इस दुनिया से जाना बहुत दुखद खबर थी।
मैंने लोगों को कहते सुना — गरीबों का डॉक्टर मर गया।
उसी तरह, उनका बेटा डॉ. संदीप “सन्नी” सूद भी लोगों की सेवा में समर्पित था।
गरीबों के हक में खड़ा रहने वाला, यारों का यार सन्नी।
मेरी मुलाकात सन्नी से उसके रिश्तेदार सोनू सूद के ज़रिए हुई। क्या सन्नी मेरा भाई है? हाँ, वह वैद्य जी का बेटा है — फिर मेरी भी उससे मुलाकातें शुरू हो गईं।
सोनू सूद ने सन्नी के घर के पास मोबाइल की दुकान खोल ली थी।
वहीं अक्सर हम चाय-पानी पीते रहते।
सन्नी के बड़े भाई मौजी सूद की किराने की दुकान भी वहीं थी।
पढ़ाई के बाद सन्नी अपने पिताजी के साथ अस्पताल बैठने लगा, फिर डॉक्टर बन गया।
मरीजों को राहत मिलने लगी, अस्पताल का नाम और ऊँचा हो गया।
जिस मरीज के पास पैसे नहीं होते थे, वह वैद्य जी की तरह दवा मुफ्त दे देता था।
परिवार के रुतबे को देखते हुए शिक्षा मंत्री तोता सिंह जी और बलजिंदर सिंह “मक्खन ब्रार” ने सन्नी को अकाली दल से एमसी (नगर निगम पार्षद) की टिकट से नवाज़ा।
और हैरानी की बात — वैद्य जी के कद और परिवार के रुतबे को देखते हुए उसके सामने कोई प्रत्याशी खड़ा ही नहीं हुआ।
सन्नी बिना मुकाबले जीत गया।

अब वह और ज़्यादा बढ़-चढ़कर लोगों की सेवा करने लगा।
अस्पताल में भी अपनी ड्यूटी निभाता।

एक दिन मेरी पत्नी मेरी बेटी की दवा लेने सन्नी के पास गई।
वहां बहुत भीड़ थी।
पत्नी ने जब सन्नी से कहा कि वह सोनू नुसरत साहब की पत्नी हैं, तो सन्नी ने पहले दवा दी।
नर्स ने 150 रुपए मांगे, लेकिन सन्नी ने पैसे लेने से इनकार कर दिया।
पत्नी ने जोर देकर पैसे देने चाहे तो सन्नी ने 500 का नोट ले लिया, पर बाकी पैसे वापस नहीं किए।
पत्नी ने भी नहीं मांगे।
लेकिन जब घर आकर देखा — दवा वाले लिफाफे में 500 के दो नोट थे।
जब मुझे यह पता चला, तो मैंने प्यार से सन्नी को फोन करके हल्के से डांटा कि “ये तूने क्या किया?”
आगे से कहने लगा —
“वीरे, तेरी बेटी मेरी भी भतीजी है। ये 500 रुपए का शगुन था।”
ऐसा था सन्नी।
वैद्य जी के जाने के बाद, अस्पताल को चैरिटेबल हॉस्पिटल बना दिया गया।
बहुत सुंदर बिल्डिंग बनाई गई।
मुझे फोन कर कहने लगा — “सोनू वीरे, ये तुम्हारा अस्पताल है।”
फिर सारा काम मेरी देखरेख में हुआ — जैसे पंखे, टीवी, गीजर, हीटर — सब मैंने वाजिब रेट में लगवा दिए।

सन्नी जहाँ भी मिलता, रुक कर “वीर जी सत श्री अकाल” कहता।
सिर्फ मुझे ही नहीं, सबको।

फिर सन्नी अपने पूरे परिवार सहित कनाडा शिफ्ट हो गया और सारा कारोबार वहीं सेट कर लिया।
पर मोगा से उसका मोह फिर खींच लाया।
पीछे से उसके बड़े भाई अस्पताल संभालते थे।

सन्नी को मिठाई खाने का बहुत शौक था।
मौजी वीरे की दुकान पर खड़े-खड़े दो-तीन चॉकलेट खा जाता,
घर की रसभरी, बर्फी भी खा लेता।
कभी-कभी लोगों की टेंशन ज़्यादा ले लेता था।
उसे थोड़ी शुगर की शिकायत हो गई।
पर वह बेपरवाह इंसान था — इसलिए शुगर बढ़ गई।
अब भी, वह कनाडा से कुछ दिन पहले वापस आया था।
मुझसे मिला।
मैंने कहा — “सन्नी, थोड़ा परेशान लग रहा है?”
कहने लगा — “नहीं वीरे, हम कभी परेशान नहीं होते — बस जिम्मेदारियाँ ज़्यादा हो गई हैं।”
कहा — “आइए, अस्पताल में चाय पिएंगे।”
मैंने कहा — “ठीक है।”
पर अब वह मौका कभी नहीं मिलेगा…
क्योंकि 15 दिन शुक्रवार की काली रात, अगस्त 2025 को सन्नी हम सबको छोड़ गया।
मुझे यह खबर 16 अगस्त को मिली कि सन्नी को शुगर का अटैक हुआ।
जिस दिन उसका अंतिम संस्कार हुआ — दिल पहले ही उदास था।
उसी दिन नुसरत साहब जी की बरसी भी थी।
और सन्नी ऊपर से और दुख दे गया।

यारा, तू बाकी…

मेरी और मेरे दोस्तों की तरफ से वाहेगुरु जी के चरणों में प्रार्थना है कि बाबा गुरु नानक साहिब जी महाराज सन्नी को अपने चरणों में निवास दें और परिवार को हिम्मत बख्शें।

दिन रविवार, 24 अगस्त को गुरुद्वारा साहिब छठवीं पातशाही (बुक्कन वाला रोड) में पाठ का भोग और अंतिम अरदास दोपहर 12 से 1 बजे तक होगी।

अंत में
“कफ़न से किसी की पहचान नहीं होती,
लेकिन लोगों की भीड़ यह बता देती है कि
यह किसी महान हस्ती का रुतबा है।”

वाहेगुरु जी।
— सोनू नुसरत, मोगा।

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