चिंतन:रामगोपाल की पोस्ट से
त्वरित प्रतिक्रिया!!
डोनाल्ड ट्रम्प का टेरिफ भारत के लिये कर्ण के वैष्णव अस्त्र जैसा सिद्ध होगा,यह भी माला बनकर भारत को ही सुशोभित करेगा। ट्रम्प ने उन्ही सेक्टर्स पर टेरिफ लगाया है जिनमें हम खुद मानते हैं कि अभी बहुत सुधार करने की जरूरत है। शेष जिन सेक्टर्स में भारत श्रेष्ठ है वहां टेरीफ नहीं लगे है।
केन्द्रीय मंत्री पीयुष गोयल ने दिल्ली में आयोजित स्टार्टअप महाकुम्भ मे युवाओं को फटकार लगाई थी कि एआई पर काम नहीं कर रहे,नई तकनीक नहीं ढूंढ़ रहे वगैरह वगैरह।लेकिन अब जब बात गले पर आएगी तो स्वतः तकनीक और तेजी से विकसित होगी। हम उस दौराहे पर खड़े हैं ज़ब या तो हमारा आईटी और इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री तबाह होंगी या विश्व में सर्वश्रेष्ठ बनेगी। अब तक का इतिहास यही है कि हमने संकट में अच्छा काम किया है।
1965 में अमेरिका ने लाल गेहूं की सप्लाई रोकी तो हरित क्रांति हुई और भारत ने एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने वाली अनाज की सप्लाई लागू की। यदि अमेरिका उस समय रोक नहीं लगाता तो हमारा सरकारी तंत्र कछुआ गति से चल रहा होता। चीन पाकिस्तान जैसे पड़ोसी ना होते तो शायद हम परमाणु शक्ति बनने का विचार भी ना करते। इतनी बड़ी आबादी ना होती तो हम कभी उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान नहीं देते।
बाइडन और ट्रम्प दोनों ने एक काम अच्छा किया कि बिल क्लिंटन और जॉर्ज बुश ने भारत में जो विश्वास जगाया था। उसे इन दोनों ने अच्छी तरह तोड़ा,ये जरूरी भी हो गया था क्योंकि धीरे धीरे अमेरिका हमें दोस्त लगने लगा था। लेकिन सच कहो तो भारत अब उस मुकाम पर है जहां ये मायने नहीं रखता कि भारत का दोस्त कौन है,मायने रखता है कि भारत किसका दोस्त है।ऑपरेशन सिंदूर मे हमें जरूरत नहीं पड़ी कि कोई विश्व शक्ति हमारा साथ दे।
हमने सबसे पहलगाम हमले की निंदा आतंकी गतिविधि के नाम पर की। आतंक के आकाओं के खिलाफ कार्रवाई के साथ
हमने पाकिस्तानी सेना को भी ठोक दिया। तुर्की के अलावा एक सिंगल देश ने भी ये नहीं बोला कि ज़ब आपकी शत्रुता आतंकी गतिविधि संचालित करने वालों से है तो पाकिस्तानी सेना को क्यों मार रहे हो? सब व्हिस्की का गिलास पकडे पाकिस्तान की मौत का नाच देखते रहे। इसलिए भारत को आवश्यकता नहीं कि किसी देश को मक्ख़न लगाए, आवश्यक औपचारिकता जरूर निभानी चाहिए।पश्चिम चाहे या ना चाहे हम रूस से तेल खरीदेंगे, रूस चाहे ना चाहे हमें जिससे यूरेनियम खरीदना है खरीदेंगे।
भारत ने मल्टीपोलर विश्व का स्तम्भ बनने का यह परिचय दे दिया है। वैसे इसमें घरेलू राजनीति में भी फायदे हो गए,अब जनता साफ देख सकती है कि ट्रम्प सिर्फ भारत नहीं पूरी दुनिया पर टेरिफ लगा रहे हैं। इसलिए ये हमारी विदेश नीति नहीं अमेरिका की घरेलू नीति का मसला है,हर आघात का उत्तर सरकार दे रही है और आंख मे आंख डालकर दे रही है। मोदी सरकार की फाइटिंग स्प्रिट विश्वसनीय है।
दूसरी ओर राहुल गांधी का भारत के विपत्तिकाल में खुश होना दर्शाता है कि विदेशी माता की कोख से जन्मी संतान कभी देशभक्त नहीं हो सकती। इसके पीछे शशि थरूर और राजीव शुक्ला जैसे लोग क्यों अपना टाईम वेस्ट कर रहे हैं पता नहीं। हम पहली बार ऐसा भारत देख रहे हैं जहां एक बंदे को छोड़कर पूरा देश एक साथ खड़ा अमेरिका को घूर रहा है। पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति चाहता है कि भारत का प्रधानमंत्री उसे फोन लगाए मगर हमारा प्रधानमंत्री उसे ठेंगा दिखाकर अपना सलाहकार रूस में भेज रहा है।
अमृतकाल की इससे अच्छी तस्वीर कुछ और नहीं हो सकती।।